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Showing posts from March 31, 2023

After death five things of man go with man - मृत्यु के पश्चात मनुष्य के साथ मनुष्य की पाँच वस्तुएँ साथ जाती हैं।

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  मृत्यु के पश्चात मनुष्य के साथ मनुष्य की पाँच वस्तुएँ साथ जाती हैं। 1. कामना-यदि मृत्य के समय हमारे मन मे किसी वस्तु विशेष के प्रति कोई आसक्ति शेष रह जाती है,कोई इक्षा अधूरी रह जाती है,कोई अपूर्ण कामना रह जाती है तो मरणोपरांत भी वही कामना उस जीवात्मा के साथ जाती है।  2. वासना- वासना कामना की ही साथी है। वासना का अर्थ केवल शारिरिक भोग से नही अपितु इस संसार मे भोगे हुए हर उस सुख से है जो उस जीवात्मा को आनन्दित करता है। फिर वो घर हो ,पैसा हो ,गाड़ी हो, रूतबा हो,या शौर्य। मृत्यु के बाद भी ये अधूरी वासनाएं मनुष्य के साथ ही जाती हैं और मोक्ष प्राप्ति में बाधक होती है।  3.कर्म- मृत्यु के बाद हमारे द्वारा किये गए कर्म चाहे वो सुकर्म हो अथवा कुकर्म हमारे साथ ही जाता है। मरणोपरांत जीवात्मा अपने  द्वारा कि ये गए कर्मो की पूँजी भी साथ ले जाता है। जिस के हिसाब किताब द्वारा उस जीवात्मा का यानी हमारा अगला जन्म निर्धारित किया जाता है।  4. कर्ज़- यदि मनुष्य ने आपने जीवन मे कभी भी किसी प्रकार का ऋण लिया हो तो उस ऋण को यथासम्भव उतार देना चाहिए ताकि मरणोपरांत इस लोक से उस ऋण को उसलोक में अपने साथ न ले जान

रामायण” क्या है What is "Ramayana

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 “रामायण” क्या है??  अगर कभी पढ़ो और समझो तो आंसुओ पे काबू रखना....... रामायण का एक छोटा सा वृतांत है, उसी से शायद कुछ समझा सकूँ.. एक रात की बात हैं, माता कौशल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी।  नींद खुल गई, पूछा कौन हैं ? मालूम पड़ा श्रुतकीर्ति जी (सबसे छोटी बहु, शत्रुघ्न जी की पत्नी)हैं । माता कौशल्या जी ने उन्हें नीचे बुलाया | श्रुतकीर्ति जी आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं माता कौशिल्या जी ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बेटी ? क्या नींद नहीं आ रही ? शत्रुघ्न कहाँ है ? श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी,  गोद में सिमट गईं, बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए । उफ !  कौशल्या जी का ह्रदय काँप कर झटपटा गया । तुरंत आवाज लगाई, सेवक दौड़े आए ।  आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्न जी की खोज होगी,  माँ चली । आपको मालूम है शत्रुघ्न जी कहाँ मिले ? अयोध्या जी के जिस दरवाजे के बाहर भरत जी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं, उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला हैं, उसी शिला पर, अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेट